शुरू हुई है एक कहानी,अभी सहमी हुई है
बचती निकल रही है,अनजान मोड़ो से
मेरी उलझी हकीकत से परेशां हो तुम
मेरी हैरानी तुम्हारी साफगोई से है
ये जीवन खुली किताब नहीं
न इनमे दर्ज कहानियाँ सब खुशनुमा हैं
काले कोनों से गुज़रा हूँ मैं
और कालिख के दाग धुलते भी नहीं
तुम मुझे यूँ चाहना की तुम उन पन्नो से जब तुम गुजरो
मुझे अपने सिरहाने बिठा लेना तुम
शायद तुम्हारे सवाल, सवाल ही रह जायें
शायद मेरी आँखों में झांक तुम अपना यकीन खोज पाओ
Came here after long time and not disappointed…welcome to your new story..amen!
Thanks Rajita…..:-)